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ऑफिस और रजिस्टर

  रात की नींद खोते हैं, भोर के ख्वाब खोते हैं घर में सब लोग सोते हैं, अकेले हम ही उठते हैं. हरारत और थकावट है मगर इस आपाधापी में, हमारे पांव बढ़ते हैं मिसालें रोज गढ़ते हैं. कभी शरबत मचलता था, मगर अब चाय इठलाती सुबह ऑफिस की हड़बड़

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